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२०४ ) इसलिये सत्यरुचि पूर्वक सम्यग्ज्ञानीके निकटसे उपदेशका साक्षात् श्रवण किए बिना सम्यग्दर्शन नहीं हो सकता। मात्र शास्त्र पढ़नेसे सम्यग्दर्शन नही हो सकता, इसलिये जिसे सम्यग्दर्शन प्रगट करके इस संसारके जन्म-मरणसे छूटना हो, पुनः नवीन माताके पेटमें बंदी न होना हो उसे सत्समागमका सेवन करके देशनालन्धि प्रगट करना चाहिये। मात्र एक क्षणका सम्यग्दर्शन जीव के अनंत भवोंका नाश करके उसे भव-समुद्रसे पार ले जाता है।
जिज्ञासु जीवों ! इस सम्यक्त्वकी दिव्य महिमाको समझो और सत्समागमसे उस कल्याणकारी सम्यक्त्वको प्राप्त करके इस भवसमुद्रसे पार होओ। यही इस मानव जीवनका महान कर्त्तव्य है।
रामजी माणेकचन्द दोशी वीर सं० २४८७
श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंदिर, सोनगढ़ [नोट-सम्यग्दर्शन भाग २ गुजराती भाषा में छपा है गुजराती के जानकार
अवश्य वह पुस्तक मंगालें ]
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