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________________ निवेदन संसार में मनुष्यत्व दुर्लभ है। मनुष्यभव अनंतकालमें प्राप्त होता है, किन्तु सम्यग्दर्शन तो इससे भी अनंतगुना दुर्लभ है। मनुष्यत्व अनंतबार प्राप्त हुआ है किन्तु सम्यग्दर्शन पहले कभी प्राप्त नहीं किया। मनुष्यत्व प्राप्त करके भी जीव पुनः संसारमें परिभ्रमण करता है किन्तु सम्यग्दर्शन तो ऐसी वस्तु है कि यदि एकबार भी उसे प्राप्त करले तोजीवका अवश्य मोक्ष हो जाय। इसलिये मनुष्यभवकी अपेक्षा भी अनंतगुना दुर्लभ-ऐसे सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिका प्रयत्न करना ही इस दुर्लभ मानवजीवनका महानकर्त्तव्य है । सम्यग्दर्शनके बिना सम्चा जैनत्व नहीं होता। यह सम्यग्दर्शन महान दुर्लभ और अपूर्व वस्तु होने पर भी वह अशक्य नहीं है, सत्समागमद्वारा आत्मस्वभावका प्रयत्न करे तो वह सहज वस्तु है, वह आत्माकी अपने घरकी वस्तु है। इस कालमें इस भरतक्षेत्रमें ऐसे सम्यग्दर्शनधारी महात्माओंकी अत्यन्त ही विरलता है; तथापि अभी बिल्कुल अभाव नहीं है। इस समय भी खारे जलके समुद्र में मीठे कुएँकी भॉति सम्यग्दृष्टि धर्मात्मा इस भूमिमें विचर रहे हैं। ऐसे एक पवित्र महात्मा पूज्य श्री कानजी स्वामी अपने - स्वानुभवपूर्वक भव्य जीवोंको सम्यग्दर्शनका स्वरूप समझा रहे है, उनके साक्षात समागममें रहकर सम्यग्दर्शनकी परम महिमा और उसकी प्राप्तिके उपायका श्रवण करना यह मानवजीवनकी कृतार्थता है। पूज्य स्वामीजी अपने कल्याणकारी उपदेशद्वारा सम्यग्दर्शनका जो स्वरूप समझा रहे हैं उसका एक अत्यन्त ही अल्प अंश यहाँ दिया गया है। जिज्ञासु जीव एक बात खास लक्षमें रखें कि सम्यग्दर्शन प्रगट होने के पहले देशनालन्धि अवश्य होती है । छह द्रव्य और नवपदार्थोंके उपदेशका नाम देशना है और ऐसी देशनासे परिणत आचार्य आदिकी उपलब्धि तथा उनके द्वारा उपदिष्ट अर्थके श्रवण-ग्रहण-धारण और विचारणाकी शक्तिके समागम को देशनालब्धि कहते हैं (देखो षट्खंडागम पुस्तक ६ पृष्ठ
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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