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भगवान श्री कुन्दकुन्द - कहान जैन शास्त्रमाला
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उत्तर - सम्यग्दर्शनको पर्याय माननेसे उसकी महिमाको कोई कमी नहीं आ सकती । केवलज्ञान भी पर्याय है, और सिद्धत्व भी पर्याय है । जो जैसी है वैसी ही पर्यायको पर्याय रूपमें जाननेसे उसकी यथार्थं महिमा बढ़ती है, यद्यपि सम्यग्दर्शन पर्याय क्षणिक है किन्तु उस सम्यग्दर्शनका कार्य क्या है ? सम्यग्दर्शनका कार्य अखंड त्रैकालिक द्रव्यको स्वीकार करना है, अर्थात् सम्यग्दर्शन त्रैकालिक द्रव्यकी प्रतीति करता है और वह पर्याय त्रैकालिक द्रव्यके साथ एकाकार होती है, इसलिये उसकी अपार महिमा है । इसप्रकार सम्यग्दर्शनको पर्याय माननेसे उसकी महिमा समाप्त नहीं हो जाती । किसी वस्तुके कालको लेकर उसकी महिमा नही है किन्तु उसके भाव को लेकर उसकी महिमा है । और फिर यह भी सच ही है कि पर्याय दृष्टिको शास्त्र में मिथ्यात्व कहा है । परन्तु साथ ही यह जान लेना चाहिये कि पर्यायदृष्टिका अर्थ क्या है । सम्यग्दर्शन पर्याय है और पर्यायको पर्यायके रूपमें जानना पर्याय दृष्टि नहीं है । द्रव्यको द्रव्यके रूपमें और पर्यायको पर्यायके रूपमें जानना सम्यग्ज्ञानका काम है । यदि पर्यायको ही द्रव्य मानले अर्थात् एक पर्याय जितना ही समस्त द्रव्यको मानले तो उस पर्यायके लक्ष्यमें ही अटक जायगा -पर्यायके लक्ष्यसे हटकर द्रव्यका लक्ष्य नहीं कर सकेगा, इसीका नाम पर्याय दृष्टि है । सम्यग्दर्शनको पर्यायके रूपमें जानना चाहिये । श्रद्धा गुण तो आत्माके साथ त्रिकाल रहता है इसप्रकार द्रव्य गुणका त्रिकाल रूप जानकर उसकी प्रतीति करना सो द्रव्य है और यही सम्यग्दर्शन है ।
( ७ ) जो जीव सम्यग्दर्शनको गुण मानते हैं वे सम्यग्दर्शनको प्रगट करनेका पुरुषार्थ क्यों करेंगे ? क्योंकि गुण तो त्रिकाल रहने वाला है इसलिये कोई जीव सम्यग्दर्शनको प्रगट करनेका पुरुपायें नहीं करेगा और इसीलिये उसे कदापि सम्यग्दर्शन प्रगट नहीं होगा तथा मिथ्यात्व दूर नहीं होगा । यदि सम्यग्दर्शनको पर्यायके रूपमें जाने तो नई पर्यायको प्रगट करनेका पुरुषार्थ करेगा । जो पर्याय होती है वह त्रैकालिक गुणके