SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -~- सम्यग्दर्शन (१३) सम्यग्दर्शन गुण है या पर्याय ? (१) सम्यग्दर्शन ज्ञान और चारित्रकी एकता मोक्षमार्ग है । इनमें से सम्यग्दर्शन भी मोक्षमार्गरूप है । मोक्षमार्ग पर्याय है, गुण नहीं, यदि मोक्षमार्ग गुण हो तो वह समस्त जीवोंमें सदा रहना चाहिये । गुणका न तो कभी नाश हो और न कभी उत्पत्ति ही हो, मोक्षमार्ग पर्याय है इसलिये उसकी उत्पत्ति होती है और मोक्षदशाके प्रगट होने पर उस मोक्षमार्गका व्यय हो जाता है। (२) बहुतसे लोग सम्यग्दर्शनको त्रैकालिक गुण मानते हैं परन्तु सम्यग्दर्शन तो आत्माके त्रैकालिक श्रद्धा गुणकी निर्मल पर्याय है, गुण नहीं है। (३) गुणकी परिभाषा यह है कि-'जो द्रव्यके सम्पूर्ण भागमें और उसकी सभी अवस्थाओं में व्याप्त रहता है वह गुण है। यदि सम्यग्दर्शन गुण हो तो वह आत्माकी समस्त अवस्थाओंमें रहना चाहिये, परन्तु यह तो स्पष्ट है कि सम्यग्दर्शन आत्माकी मिथ्यात्वदशामें नहीं रहता, इससे सिद्ध है कि सम्यग्दर्शन गुण नहीं किन्तु पर्याय है। (४) जो गुण होता है वह त्रिकाल होता है और जो पर्याय होनी है वह नई प्रगट होती है । गुण नया प्रगट नहीं होता किन्तु पर्याय प्रगट होती है। सम्यग्दर्शन नया प्रगट होता है, इसलिये वह गुण नहीं किन्तु पर्याय है । पर्यायका लक्षण उत्पाद-व्यय है और गुणका लक्षण धोव्य है। (५) यदि सम्यग्दर्शन स्वयं गुण हो तो उस गुणकी पर्याय क्या है ? 'श्रद्धा' नामक गुण है और सम्यग्दर्शन (सम्यश्रद्धा) तथा मिण्यार्शन (मिथ्याश्रद्धा) दोनों उसकी पर्याय हैं । सन्यग्दर्शन शुद्ध पर्याय है और मिथ्यादर्शन श्रशुद्ध पर्याय है। (६) प्रश्न-यदि मम्यग्दर्शनको पर्याग मान्ग डाल गो की महिमा समान हो जायगी, क्योंकि पर्याय तो गित होनो और Sir दृष्टिको शास्त्रमें मिथ्यात्व कहा है।
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy