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________________ २४४ ---* सम्यग्दर्शन सम्यग्दर्शनको मान्य है। सम्यग्दर्शन पर्यायको स्वीकार नहीं करता किन्तु सम्यग्दर्शनके साथ नो सम्यग्ज्ञान रहता है उसका संबंध निश्चय-व्यवहार दोनोंके साथ है। अर्थात निश्चय-अबण्ड स्वभावको तथा व्यवहार में पर्याय के जो भंग-भेद होते हैं उन सवको सम्यग्ज्ञान जान लेता है। सम्यग्दर्शन एक निर्मल पर्याय है किन्तु सम्यग्दर्शन स्वय अपनेको यह नहीं जानता कि मै एक निर्मल पर्याय हूँ। सम्यग्दर्शनका एक ही विषय अखण्ड द्रव्य है, पर्याय सम्यग्दर्शनका विषय नहीं है। प्रश्न-सम्यग्दर्शन का विषय अखण्ड है और वह पर्यायको स्वीकार नहीं करता तव फिर सम्यग्दर्शनके समय पर्याय कहाँ चली गई ? सम्यग्दर्शन स्वयं पर्याय है, क्या पर्याय द्रव्यसे भिन्न होगई ? उत्तर-सम्यग्दर्शनका विपय तो अखण्ड द्रव्य ही है। सम्यग्दर्शनके विषयमें द्रव्य गुण पर्यायका भेद नहीं है। द्रव्य गुण पर्यायसे अभिन्न वस्तु ही सम्यग्दर्शनको मान्य है (अभेद वस्तुका लक्ष्य करने पर जो निर्मल पर्याय प्रगट होती है वह सामान्य वस्तुके साथ अभेद होजाती है) सम्यग्दर्शनरूप जो पर्याय है उसे भी सम्यग्दर्शन स्वीकार नहीं करता एक समय में अभेद परिपूर्ण द्रव्य ही सम्यग्दर्शनको मान्य है, मात्र आत्मा तो सम्यग्दर्शनको प्रतीतिमें लेता है किन्तु सम्यग्दर्शनके साथ प्रगट होनेवाला सम्यरज्ञान सामान्य विशेष सवको जानता है। सम्यग्दर्शन पर्यायको और निमित्त को भी जानता है, सम्यग्दर्शनको भी जानने वाला सम्यग्नान ही है। श्रद्धा और ज्ञान कव सम्यक् हुये उदय, उपशम, क्षयोपशम अथवा क्षायिक भाव इत्यादि कोई भी सम्यग्दर्शनका विषय नहीं है क्योंकि वे सब पर्यायें है। सम्यग्दर्शनका विषय परिपूर्ण द्रव्य है। पर्यायको सम्यग्दर्शन स्वीकार नहीं करता, मात्र वस्तुका जव लक्ष्य किया तब श्रद्धा सम्यक् हुई, साथ ही साथ सम्यक्ज्ञान हुआ, ज्ञान सम्यक् कव हुआ ? ज्ञानका स्वभाव सामान्यविशेष सवको जानना है जब ज्ञानने सारे द्रव्यको, प्रगट
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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