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- सम्यग्दर्शन घीके रूपमें होजाता है और घी बदलकर विष्टामें रूपांतरित होनाता है; उसमें मूल स्थिर रहने वाली कौनसी वस्तु है जिसके आधार से यह रूपान्तर हुआ करते हैं ? विचार करनेपर मालूम होगा कि नित्य स्थाई मूल वस्तु परमाणु है और परमाणु वस्तुके रूपमें नित्य स्थिर रहकर उसकी अवस्था में रूपान्तर होते रहते हैं । इसप्रकार सिद्ध हुआ कि दृष्टिगोचर न हो सकने पर भी परमाणु वस्तु है ।
जैसे परमाणुका अस्तित्व ज्ञानके द्वारा निश्चित किया जा सकता है उसीप्रकार आत्माका अस्तित्व भी ज्ञानके द्वारा निश्चित किया जा सकता है । यदि आत्मा न हो तो यह सब कौन जानेगा ? "आत्मा नहीं है" ऐसी शंका भी आत्माके अतिरिक्त दूसरा कौन कर सकता है ? आत्मा है और 'है' के लिये वह त्रिकाल स्थाई है ।
आत्मा जन्मसे मरण तक ही नहीं होता कितु वह त्रिकाल होता है जन्म और मरण तो शरीरके संयोग और वियोगकी अपेक्षासे हैं । यदि शरीरकी अपेक्षाको अलग कर दिया जाय तो जन्म मरण रहित आत्मा लगातार त्रिकाल है वास्तवमें आत्माका न तो जन्म होता है और न मरण होता है । आत्मा सदा शाश्वत अविनाशी वस्तु है आत्मा वस्तु ज्ञान स्वरूप है, वह निजसे ही है; वह शरीर इत्यादि अन्य पदार्थोंसे स्थिर नहीं है अर्थात् आत्मा पराधीन नहीं है । आत्मा कर्माधीन नहीं है किन्तु स्वाधीन है।
Many go
-जीव और अजीव
'आत्मा कैसा है ?' यह प्रश्न उपस्थित होते ही इतना तो निश्चित हो ही गया कि आत्मासे विरुद्ध जातिके अन्य पदार्थ भी हैं और उनसे इस आत्माका अस्तित्व भिन्न है । अर्थात् आत्मा है, आत्माके अतिरिक्त पर वस्तु है और उस परवस्तुसे आत्माका स्वरूप भिन्न है, इसलिये यह भी निश्चित होगया कि आत्मा पर वस्तुका कुछ नहीं कर सकता । इतना यथार्थ समझ लेने पर ही जीव और अजीवके अस्तित्वका निश्चय करना कहलाता है ।