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________________ भगवान श्री कुन्दकुन्द - कहान जैन शास्त्रमाला २२५ जीव स्वयं ज्ञाता स्वरूप है ऐसा निश्चय करने पर यह भी स्वतः निश्चय होगया कि जीवके अतिरिक्त अन्यपदार्थ ज्ञाता स्वरूप नहीं है । जीव ज्ञाता है-चेतन स्वरूप है इस कथनका कारण यह है कि ज्ञातृत्व से रहित-अचेतन अजीव पदार्थ भी हैं । उन अजीव पदार्थोंसे जीवकी भिन्नताको पहचाननेके लिये ज्ञातृत्वके चिह्न से ( चेतनताके द्वारा ) जीवकी पहचान कराई है । जीवके अतिरिक्त अन्य किसी भी पदार्थ में ज्ञातृत्व नहीं है। इससे जीव और अजीव नामक दो प्रकारके पदार्थोंका 'अस्तित्व निश्चित् हुआ | उनमें से जीव द्रव्यके सम्बन्धमें अभी तक बहुत कुछ कहा जा चुका है। अजीव पदार्थ पांच प्रकारके हैं- पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, और काल । इसप्रकार छह द्रव्यों (जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ) में से मात्र जीव ही ज्ञानवान है, शेष पाँच ज्ञान रहित हैं । वे पाँचों पदार्थ जीवसे विरुद्ध लक्षण वाले हैं इसलिये उन्हें 'अजीव' अथवा जड़ कहा गया है । 1 छह द्रव्योंकी विशेष सिद्धि - २ जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्य जो स्थूल पदार्थ हमें दिखाई देते हैं उन शरीर, पुस्तक, पत्थर, लकड़ी इत्यादिमें ज्ञान नहीं है अर्थात् वे अजीव हैं। उन पदार्थों को सो अज्ञानी जीव भी देखता है। उन पदार्थों में कमी बेशी होती रहती है अर्थात् वे एकत्रित होते हैं और पृथक् हो जाते हैं। ऐसे दृष्टिगोचर होने वाले पदार्थोंको पुद्गल कहते हैं । रूप, रस, गंध, और स्पर्श पुद्गल द्रव्यके गुण हैं; इसलिये पुद्गल द्रव्य काला- सफेद खट्टा-मीठा; सुगन्धित - दुर्गन्धित और हल्का-भारी इत्यादि रूपसे जाना जाता है । यह सब पुद्गलके ही गुण हैं । जीव काला - गोरा, या सुगन्धित-दुर्गन्धित नहीं होता; जीव तो ज्ञानवान है। शब्द टकराता है अथवा बोला जाता है, यह सब पुद्गलकी ही पर्याय है । जीव उन पुद्गलोंसे भिन्न है । लोकमें अज्ञानी वेहोश मनुष्य २६ १.
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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