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भगवान श्री कुन्दकुन्द - कहान जैन शास्त्रमाला
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आँखों से दिखाई नहीं देती तथापि वह ज्ञानके द्वारा जाना जा सकता है; इसी प्रकार अनेक परमाणु एकत्रित होकर सोना, लकड़ी, कागज इत्यादि दृश्यमान स्थूल पदार्थोंके रूपमें हुये हैं जिनसे परमाणुका अस्तित्व निश्चित् हो सकता है । जितने भी स्थूल पदार्थ दिखाई देते हैं वे सब परमाणुकी 21 जाति के ( अचेतन वर्णादि युक्त ) ज्ञात होते हैं, उसका अन्तिम अंश परमअणु है । इससे निश्चित् हुआ कि आँख से दिखाई न देने पर भी परमाणुका नित्य अस्तित्व ज्ञानमें प्रतीत होता है ।
यदि ऐसा कहा जाय कि हम तो उतना ही मानते हैं जितना आँखों से दिखाई देता है - अन्य कुछ नही मानते तो हम इसके समाधानार्थ यह पूछते है कि क्या किसीने अपने सात पीढ़ी पहलेके बापको अपनी आँखों से देखा है ? ऑखोंसे न देखने पर भी सात पीढ़ी पूर्व बाप था यह मानता है या नहीं ? वर्त्तमानमें स्वयं है और अपना बाप भी है इसलिये सात पीढ़ी पूर्वका बाप भी था इसप्रकार आँखोंसे दिखाई न देने पर भी निःशंकतया निश्चय करता है, उसमें ऐसी शंका नहीं करता कि "मैंने अपने सात पीढ़ी पूर्वके पिताको आँखोंसे नहीं देखा इसलिये वे होंगे या नहीं ?" वस्तुका अस्तित्व आँखों से निश्चित् नहीं होता किंतु ज्ञानसे ही निश्चित् होता है और इसप्रकार जानने वाला ज्ञान भी प्रत्यक्ष ज्ञानके समान ही प्रमाणभूत है ।
जो वस्तु वर्तमान अवस्थाको धारण कर रही है वह वस्तु त्रिकाल स्थाई अवश्य होती है यदि त्रिकालिता न हो तो उसकी वर्तमान अवस्था भी न हो सके । उसकी जो वर्तमान अवस्था ज्ञात होती है वह वस्तुका त्रिकाल अस्तित्व प्रगट करती है। वर्तमानमें परमाणुकी अवस्था टोपीके रूप में है वह यह प्रगट करती है कि हम पहले कपास, सूत इत्यादि अवस्था रूपमें थे और भविष्यमै धूल, अन्य इत्यादि अवस्था रूप रहेंगे । इसप्रकार वर्तमान अवस्था वस्तुके त्रिकाल अस्तित्वको घोषित करती है। अब यहाॅ यह विचार करना चाहिये कि दूध बदलकर दही बन जाता है, दही बदलकर मक्खन या