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- सम्यग्दर्शन
( ४३ ) धर्मकी पहली भूमिका भाग ३
[ आत्मस्वरूपकी विपरीत मान्यताको मिथ्यात्व कहते हैं, मिथ्यात्व ही सबसे बड़ा पाप है और वही हिसा है; उसे आत्माकी यथार्थ समझके द्वारा दूर किया जा सकता है । यथार्थ समझके होने पर ही धर्म की सत् क्रिया प्रारंभ होती है और अधर्मरूपी असत् क्रियाका नाश होता है । यथार्थ समझके द्वारा बालक, युवक वृद्ध और सभी जीव सम्यग्दर्शन प्राप्त कर सकते हैं, इसलिये वस्तुस्वरूपकी यथार्थ समझ प्राप्त करनी चाहिये । वस्तुस्वरूपका वर्णन करते हुये नव तत्त्व, द्रव्य - पर्याय, निश्चयव्यवहार, उत्पाद–व्यय - ध्रौव्य, अस्ति नास्ति, नित्य-अनित्य, सामान्यविशेष इत्यादिका स्वरूप संक्षेपमें बता चुके है । अव छह द्रव्योंको विशेषतया सिद्ध करके वस्तु स्त्ररूप सम्वन्धी विशेष ज्ञातव्य कुछ बातें बताई जाती हैं और अन्तमें उसका प्रयोजन बतलाकर यह विपय समाप्त किया जाता है ]
— वस्तुके अस्तित्वका निर्णय
प्रश्न - यह कहा है कि आत्मा और परमाणु वस्तु हैं परन्तु यदि ! परमाणु वस्तु हों तो वे आँखों से दिखाई क्यों नहीं देते ? और आत्मा भी ऑंखों से क्यों नहीं दिखाई देता ? जो वस्तु है यह आँखोंसे दिखाई देनी चाहिये १
उत्तर—यह सिद्धान्त ठीक नहीं है कि जितना ऑखोंसे दिखाई दे उतना माना जाय । यह मान्यता भी उचित नहीं है कि सोमे दिखाई देने पर ही कोई चीज वस्तु कहलाती है । वस्तु ऑसोंसे भले ही वाई
किन्तु ज्ञानमें तो मालूम होती ही है । एक पृथक् रजक ( परमाणु ) आँखोंसे दिखाई नहीं दे सकता किन्तु ज्ञानके द्वारा उसका निश्चय किया सकता है । जैसे पानी ओक्सीजन और हाईड्रोजन के एकत्रित होने पर बनता है किन्तु प्रोक्सीजन और हाईड्रोजन और उसमें पानी श