________________
भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला
२२१ -अन्तमेंप्रश्न- यह सब किसलिए समझना चाहिये ?
उत्तर-अनादिकालसे चले आये हुए अनंत दुःखके कारण एवं महा पाप रूप मिथ्यात्वको दूर करनेके लिए यह सब समझना आवश्यक है। यह समझ लेने पर आत्म स्वरूपकी यथार्थ पहिचान हो जाती है और सम्यग्दर्शन प्रगट हो जाता है तथा सच्चा सुख प्रगट हो जाता है, इसलिये इसे ठीक २ समझनेका प्रयत्न करना चाहिए । SHAMInsanuilMisanilincialiAcanthical KhimsamitMancanlunismnMansaniHuncannel
सम्यग्दर्शनकी महानता यह सम्यग्दर्शन महा रत्न है, सर्वलोकके एक भूषणरूप है अर्थात् सम्यग्दर्शन सर्व लोकमें अत्यन्त शोभायमान है और वही मोक्षपर्यंत सुख देनेमें समर्थ है। .
[ज्ञानार्णव अ० ६ गा० ५३] सम्यग्दर्शनसे कर्मका क्षय जो जीव मिथ्यात्वको छोड़कर सम्यक्त्वको ध्याता है वही सम्यग्दृष्टि होता है, और सम्यक्त्वरूप परिणमनसे वह नीव इन दुष्ट अष्ट कर्मोंका क्षय करता है।
[मोक्षपाहुड़-८७] सर्व धर्मका मूल ज्ञान और चारित्रका बीज सम्यग्दर्शन ही है। यम और प्रशम भावोंकाजीवनसम्यग्दर्शनही है, और तप तथा स्वाध्यायका आधार भी सम्यग्दर्शन ही है। इसप्रकार आचार्यों ने कहा है।
[ज्ञानार्णव अ०६-५४ ] टणासायनशासाठणादाणादाणा वाटाणा सापाटयावरणालाष्टपणा