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________________ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला २१३ सम्यग्ज्ञानका तीव्र विरोध करनेसे निगोद दशा होती है, जहाँ स्थूल ज्ञान वाले अन्य जीव उस जीवके अस्तित्व तकको स्वीकार नहीं करते। ___कभी निगोद दशामें कषायकी मंदता करके जीव वहॉसे मनुष्य हुआ और कदाचित् धर्मकी जिज्ञासासे सच्चे देव गुरु शास्त्रको पहिचान कर व्यवहार मिथ्यात्वको (गृहीत मिथ्यात्वको) दूर किया, किन्तु आत्म स्वरूपको नहीं पहिचाना; इसलिये जीव अनन्तानन्त कालसे चारों गतियोंमें दुःखी ही होता रहता है । यदि सच्चे देव गुरु शास्त्रको पहिचान कर अपने आत्मस्वरूपका सूक्ष्मदृष्टिसे विचार करे और स्वयं ही सत् स्वरूपका निर्णय करे तभी जीवकी महाभयंकर भूल दूर हो, सुख प्राप्त हो और जन्म मरण का अन्त हो। -महा मिथ्यात्व कब दूर हो ?जिसे आत्मस्वरूपके यथार्थ परिज्ञानके द्वारा अनादिकालीन महा भूलको दूर करनेका उपाय दूर करना हो उसे इसके लिये आत्मज्ञानी सत् पुरुषसे शुद्धात्माका सीधा स्वरूप सुनना चाहिये और उसका स्वयं अभ्यास करना चाहिये। ध्यान रहे कि मात्र सुनते रहनेसे अगृहीत मिथ्यात्व दूर नहीं होता, किंतु अपने स्वभावके साथ मिलाकर स्वयं निर्णय करना चाहिये। जीव स्वयं अनन्त बार तीर्थकर भगवानके समवशरणमें जाकर उनका उपदेश सुन आया है। किंतु स्वाश्रय स्वभावकी श्रद्धा किये बिना उसे धर्म प्राप्त नहीं हुआ। "आत्मा ज्ञानस्वरूप है, किंतु वह परका कुछ भी कर नहीं सकता, पुण्यसे आत्माका धर्म नहीं होता" ऐसी निश्चयकी सच्ची बात सुनकर उसे स्वीकार करनेकी जगह जीव इन्कार करता है कि 'यह बात अभी अपने लिये कामकी नहीं है, कुछ पराश्रय चाहिये और पुण्य भी करना चाहिये, पुण्यके बिना अकेला आत्मा कैसे टिक सकता है ? इसप्रकार अपनी पराश्रयकी विपरीत मान्यताको दृढ़ करके सुना। सत्को सुनकर भी उसने उसे आत्मामें ग्रहण नहीं किया इसलिये महा मिथ्यात्व दूर नहीं हुआ।
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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