SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला २११ त्व कहते हैं। उसके मुख्य तीन प्रकार हैं-देवमूढ़ता, गुरुमूढ़ता, और धर्ममूढ़ता अर्थात् लोकमूढ़ता। देवमूढ़ता-अज्ञानी, रागी, द्वेषीको देवके रूपमें मानना, कोई बड़ा कहा जाने वाला आदमी किसी २ कुदेवको देव मानता हो इसलिये स्वयं भी उस कुदेवको मानना और उससे कल्याण मानकर उसकी पूजा-चंदनादि करना तथा अन्य लौकिक लाभादिकी आकांक्षासे अनेक प्रकारके कुदेवादिको मानना सो देवमूढ़ता है। ___ गुरुमढ़ता—जिस कुटुम्बमें जन्म हुआ है उस कुटुम्बमें माने जाने वाले कुल गुरुको समझे विना मानना, अज्ञानीको गुरुरूपमें मानना अथवा गुरुका स्वरूप सग्रंथ मानना सो गुरु संबंधी महा भूल यानी गुरुमूढ़ता है। धर्म मढ़ता-(लोक मूढ़ता)-हिसा भावमें धर्म मानना सो धर्म मूढ़ता है । वास्तवमें जैसे पापमें आत्माकी हिंसा है वैसे पुण्यमें भी आत्मा की हिसा होती है, इसलिये पुण्यमें धर्म मानना भी धर्ममूढ़ता है। तथा धर्म मानकर नदी इत्यादिमें स्नान करना, पशु हिसा में धर्म मानना इत्यादि सर्व धर्म संबंधी भूल है। इसे लोक मूढ़ता कहते है। -गृहीत मिथ्यात्व तो छोड़ा किन्तुयह त्रिधा महा भूल जीवके लिये बहुत बड़ी हानिका कारण है। स्वयं जिस कुलमें जन्म लिया है उस कुलमें माने जाने वाले देव, गुरु, धर्म कदाचित् सच्चे हों और उन्हें स्वयं भी मानता हो किन्तु जबतक स्वयं परीक्षा करके उनकी सत्यताका-निश्चय नहीं कर लेता तबतक गृहीत मिथ्यात्व नहीं छूटता । गृहीत मिथ्यात्वको छोडे बिना जीवके धर्म समझने की पात्रता ही नहीं आती। प्रश्न-इन दो प्रकारके मिथ्यात्वमेंसे पहले कौनसा मिथ्यात्व दूर होता है? उत्तर-पहले गृहीत मिथ्यात्व दूर होता है। गृहीत मिथ्यात्वके दूर किये बिना किसी भी जीवके अगृहीत मिथ्यात्व दूर नहीं हो सकता।
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy