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-* सम्यग्दर्शन यह आमका दृष्टान्त देकर अन्यत्व भेदका स्वरूप समझाते हैंआममें रंग और रसगुण भिन्न २ हैं, रंग गुण हरी दशाको बदलकर पीली दशा रूप होता है तथापि रस तो खट्टा का खट्टा ही रहता है तथा रस गुण बदलकर मीठा हो जाता है तथापि. आमका रंग हरा ही रहता है क्योंकि रंग और रस गुण भिन्न २ हैं। इसप्रकार वस्तुमें दर्शन गुणके विकसित होने पर भी चारित्र गुण विकसित नहीं भी होता है। परन्तु ऐसा नहीं हो सकता कि चारित्र गुण विकसित हो और दर्शनगुण विकसित न हो । स्मरण रहे कि सम्यकदर्शन के बिना कदापि सम्यक्चारित्र नहीं हो सकता।
प्रश्न-जब कि श्रद्धा और चारित्र दोनों गुण स्वतंत्र है तव ऐसा क्यों होता है ?
उत्तर-यह सच है कि गुण स्वतंत्र है परन्तु श्रद्धा गुणसे चारित्रगुण उच्च प्रकारका है, श्रद्धाकी अपेक्षा चारित्रमें विशेष पुरुषार्थकी भावश्यक्ता है और श्रद्धाकी अपेक्षा चारित्र विशेष पूज्य है इसलिये पहले श्रद्धाके विकसित हुए बिना चारित्रगुण विकसित हो ही नहीं सकता। जिसमें श्रद्धा गुणके लिये अल्प पुरुषार्थ न हो उसमें चारित्र गुणके लिये अत्यधिक पुरुषार्थ कहांसे हो सकता है ? पहले सम्यक् श्रद्धाको प्रगट करनेका पुम्पार्थ करनेके बाद विशेष पुरुषार्थ करने पर चारित्रदशा प्रगट होती है। श्रद्धाफी अपेक्षा चारित्रका पुरुषार्थ विशेष है इसलिये पहले श्रद्धा होती है, उसके बाद चारित्र होता है। इसलिये पहले श्रद्धा प्रगट होती है और फिर चारित्रका विकास होता है। श्रद्धागुणकी क्षायिक श्रद्धा रुप पर्याय होनेपर भी शान
और चारित्रमें अपूर्णता होती है। इससे सिद्ध हुआ कि वस्तुमें अनत गुग्ण हैं और वे सव स्वतंत्र हैं। वही अन्यत्व भेद है।
ज्ञानीके चारित्रके दोपके कारण रागद्वेप होता है तथापि इने अन्तरंगसे निरन्तर यह समाधान बना रहता है कि यह गगकैप पर यमुझे परिणमनके कारण नहीं किन्तु मेरे दोपमे होते हैं, तयापि यह मंग का नहीं है, मेरी पर्याय में रागद्वेप होनेमे परमें कोई परिवर्तन नहीं होना । मी