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-* सम्यग्दर्शन
(१८) सबमें बड़ेमें बड़ा पाप, सबमें बड़ेमें बड़ा पुण्य और सबमें पहले में पहला धर्म ।
प्रश्न-जगतमें सबसे बड़ा पाप कौनसा है ?
उत्तर - मिथ्यात्व ही सबसे बड़ा पाप है
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प्रश्न - सबसे बड़ा पुण्य कौनसा है ?
उत्तर- तीर्थकर नामकर्म सबसे बड़ा पुण्य है । यह पुण्य सम्यग्दर्शनके वादकी भूमिकामें शुभरागके द्वारा बँधता है । मिथ्यादृष्टिको यह पुण्य लाभ नहीं होता ।
प्रश्न - सर्वप्रथम धर्म कौनसा है ?
उत्तर --- सम्यग्दर्शन ही सर्व प्रथम धर्म है । सम्यग्दर्शनके बिना ज्ञान चारित्र तप इत्यादि कोई भी धर्म सम्चा नहीं होता । यह सब धर्म सम्यग्दर्शन होनेके बाद ही होते हैं, इसलिये सम्यग्दर्शन ही सर्वधर्मका मूल है ।
प्रश्न -- मिथ्यात्व को सबसे बड़ा पाप क्यों कहा है ?
उत्तर—मिथ्यात्वका अर्थ है विपरीत मान्यता; अयथार्थ समझ ।
जो यह मानता है कि जीव परका कुछ कर सकता है और पुरीयसे धर्म होता है उसकी उस विपरीत मान्यतामें प्रतिक्षण अनंत पाप आते वह कैसे ? सो कहते हैं:
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जो यह मानता है कि 'पुण्यसे धर्म होता है और जीव दूसरेका कुछ कर सकता है' वह यह मानता कि 'पुण्यसे धर्म नहीं होता और जीव परका कुछ नहीं कर सकता- ऐसे कहने वाले झूठे हैं' और इसलिये 'पुण्य से धर्म नहीं होता और जीव परका कुछ नहीं कर सकता' ऐसा कहने वाले