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________________ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला १०१ में पड़े हुए सम्यग्दर्शन प्राप्त जीवको वह नरककी पीड़ा असर नहीं.- कर सकती, क्योंकि उसे भान है कि मेरे ज्ञान स्वरूप चैतन्यको कोई पर पदार्थ असर नहीं कर सकता। ऐसी अनन्ती वेदनामें पड़े हुए भी आत्मानुभवको प्राप्त हुए हैं, तब फिर सातवें नरक जितना कष्ट तो यहाँ नहीं है न ? मनुष्यत्व पाकर रोना क्या रोता रहता है ? अब सत्समागमसे आत्माकी पहिचान करके आत्मानुभव कर ! आत्मानुभवका ऐसा माहात्म्य है कि-परिषह आनेपर भी न डिगे और दो घड़ी स्वरूप में लीन हो तो पूर्ण केवलज्ञान प्रगट करे ! जीवन्मुक्त दशा होमोक्ष दशा हो ! तब फिर मिथ्यात्वका नाश करके सम्यग्दर्शन-प्रगट करना तो सुगम है। [श्री समयसार प्रवचन भाग ३] सम्यक्त्व की प्रधानता "जे सम्यक्त्वप्रधान बुध, तेज त्रिलोक प्रधान; पामे केवलज्ञान झट, शाश्वत सौख्य निधान !" (योगसार-६०.) जिसे सम्यक्त्व की प्रधानता है वह ज्ञानी है, और वहीं तीन लोकमें प्रधान है, जिसे सम्यक्त्व की प्रधानता है वह जीव शाश्वत सुखके निधान-ऐसे केवलज्ञानको भी जल्दी प्राप्त कर लेता है। maANI
SR No.010461
Book TitleSamyag Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanjiswami
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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