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(५८) केइ जणा तो ज्ञान सुणीने।लीनी सम्यक्त्व धार ॥ वरषत पाणी रह गया कोरा । केईक ऐसा नरनार ॥चालो ॥ ७ ॥ नगर उज्जैनी आया विचरता । ठाना दस परिवार। कहे हीरालाल साल चौसटके । वरते मङ्गला चार ॥ चालो ॥ ८॥
॥ ज्ञान बगीचा लावणी-छोटी कडीमें ॥ __ मालीने लगाया बाग । बडा गुलजारी॥ फुल रहे फूल फलवाद केशरकी क्यारी ॥ आं०॥ आत्म अपनीका अम्बका पेड लगाया ॥ यत्नाका जांबू डालोडाल फैलाया ॥ यह सतका सीताफल शीतल है छाया॥ लगत है आति मीठा अमृत फल खाया॥ यह बड पीपल दोइ अभय सुपात्र मारी।फुल ॥१॥
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