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मिलत्-उन्होंको कोई नहीं छीते जहान॥ बंदगी॥३॥ सिखाया सुत्र अर्थ और पाट । बताइ मोक्ष जा
नेकी वाट ॥ उन्होसे रखेजो दिलमें आंटकपटकी भरी गांठमें गांठ दोहा-मोका होवे कोइ कामका । टल्ला लहे तुरंत ॥ पडेल बैल गलियार गधा जिम । चले न
सीधा पंथ ।। मिलत-हसरत सहेत है अजान ॥ बंदगी ॥ ४॥ नुगरा करे मोक्षमें वासाकभी नहीं होय मोक्षके पास उसके कर्मसे उसका नाश । फल जिम लगे जं
गलमें वांस ॥ दोहा-कण कुन्डको त्यागकर । सूवर भिष्टा खाय ॥
सडे कानके श्वान ज्यों । शास्त्रमें बतलाय॥ मिलत-मिले क्या मान और सन्मान ॥वंदगी॥५॥ अपनी हेसीयतके प्रमानावंदगी करो पकड दो कान