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(४२) दोहा-रात दिवस चरणा विषे । रह्यो चित लपटाय।। अली पंखज और शंख सरीखा । उज्वल
ध्यान लगाय ॥ मिलत-हमारी यही विनंती मान ॥ बंदगी॥१॥ भणगुण किया गुरु होशियार । फेरवो मरते खारोखार बचन बोबोले कठिन तलवारा चालसेचले दुष्ट आचार दोहा-अपने मत फिरता फरे । बोले औगुनवाद ॥
__ स्वछन्दी अंध मदमाता । नाम धराते साद॥ मिलत-लजाते घर अपना अज्ञान ॥ बंदगी ॥२॥ डोले केइ नुगरा होवे संसार । जिनोपर लाख
पापका भार । मतकरो उनका कोइ इत्बाराफेलाते जगमें झूटीजार दोहा-निनवादि सब देखलो । परभव के दरम्यान॥ 3 काला मुंहका होवे देवता । अलग वसे
अवस्थान ॥