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(४४) तकब्बूर तजो याने अभीमान । वही गुणीजन
गुणकी खान ॥ दोहा-गुरु महिमा सव मतमें । वरणन करी अनंत॥ हीरालालको जवाहिरलालजी । मिले गुरु
गुणवंत ॥ मिलत-जभी तुम करते हो वाख्यान ॥वंदगी॥६॥
॥वैरागी और स्त्रीका प्रश्नोत्तर॥ वेदक विरला हो-दे॥ बोले बचन वनीता सुणीजे । संयम मार्गइम किम लीजे रे॥सुणोर प्रीतमजी॥१॥ हम तुम घरकी पल्ले लागी। किम छांडो छो बड भागीरे॥ सुणो २ प्री० ॥२॥ परणी घरणी जो तुम प्यारी । किम रहसी घडी एक न्यारी रे ।। सुणो२प्री०॥३॥ - [ अवस्था तुम हम तरुणी।