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करत कलोल भव्य विहङ्गा ॥ च ॥३॥ घौर गुंजारव शब्द कर गूंजे।। मृदु वाक्य अति ऊतङ्गा ॥ च ॥ ४ ॥ कहे 'हीरालाल' सब शास्त्र प्रमाणिक । जामें जीवदयारस मतङ्गा ॥च ॥ ५॥
॥ श्री महावीर स्वामीका मंगल स्तवन ॥
॥ लावणीकी चालमें ॥ श्री महावीर बलवंत अनंता । कर्म शत्रूको दूर हरे॥ वृद्धमान वृद्धीके कारण ।ऋद्धि वृद्धि भंडार भरे॥ अमरपति नरपति खगपति । सेवा करे जिनवर चरणं॥ जयजिनेन्द्रजयजिनेन्द्रं । तुमशरणंहमसुखकरणं॥१॥ चौसट इन्द्र और इन्द्राण्यां । मिलरकर मङ्गल गावे॥ फलोंकी वर्षा होवेशुशरखा। देखअरिदल मुरजावे॥ जिनवाणीकोसुणेसुणावे।सुखसागरलीलावरणेजयर