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(१५) घन जिम गाजे अम्बर राजे। प्रभूमुख वाणी रही छवि छाइ ॥ आ ॥३॥ प्रथम जिनेश्वर आनन्दकारी । मङ्गल वरते सब दिन ताइ । कहे 'हीरालाल ' आप विराजा। माताने मुक्तीमे दिया पहोंचाइ ॥ आ ॥ ४॥
।। श्री जिनवाणी स्तवन । राग-वसंत-होली। चली आती है, हारे चली आती है। वाणी जिनवर गंगा ॥ आं.॥ प्रभू मुखसागर वहे अति निर्मळ । गणधर गुणग्रह ऊमगा ॥च ॥ १॥ दादश अङ्गीचङ्गी सरिता । वितर्क अनेक भयो तरङ्गा ॥च ॥ २॥ या जिन वाणी दुःख दाह मिटाणी।