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कहे 'हीरालाल' दयाल प्रभूको ।
जन्म मरण दुःख वेग मिटावे ॥ श्री ॥५॥ ॥ श्री ऋषभदेवजीके आगमकी वधाइका स्तवन।।
आज अजोध्या नगरीक मांही। हर्षे भये सब लोग लुगाइ ॥ आं.॥ माता मरुदेवी अति सुख पाइ । भरत नरेश्वर देत बधाइ ॥ कर असवारी वंदण काजे । आवत चरणों में शीस नमाइ ॥आ ॥ १ ॥ वस्त्र विलेपन कुंकुम केशर । पहरिया भूषण जोर सजाइ ॥ कर २ मंडण वंदन काजे। निरखत नयनोंमें रहे रे लोभाइ ॥ आ ॥ २ ॥ सुरनर केइ विद्याधर आये। नाचत नाटक रुप बनाइ ॥