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( १३ )
जन्म लियो प्रभू सब सुख पावे ॥ श्री ॥ १ ॥ कंचन वरण शरीर विराजे ।
॥ श्री ॥ २ ॥
केहर लंछन चरण कहवावे || दीसे देही सप्त हस्त प्रमाणे । दिनकर तेज जिम दीपावे रत्न सिंहासन उपर विराजे । छाजे छत्र चमर दुलावे ॥ मनमोहन भामंडल भासत । चतुरानन प्रभू दर्श दिखावे ॥ श्री ॥ ३ ॥ नर तिर्यंच सुरासुर केइ | कोडाकोडी गिणती न आवे ॥ प्रभूमुख जोवे तृप्त न होवे | हर्ष २ हियो उमंगावे चरम जिनेश्वर वर्ण युगलको । नमतां नवनिध पाप पलावे ||
॥ श्री ॥ ४ ॥