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आक्रंदादि शब्दनीर झरे जेके नयणा || जिम कोई नारके भरतारको वियोग भयो । अन्य आगल मांड कहे निज दहेणा ॥ हीरालाल कहे सुख भोग हे संतोष जोग । जैनधर्म पाया रोग मिटे करो जयणा क्रोधादिक उपशांत होत है प्रशांतरस | विषय कषाय हिंसा दोषसे नीतियां || कोइक पुरुष मुनीराजको देखीने कहे । सोमद्रष्टी निर्विकार सोवे साधु जतियां || शशी जूं सीतल मुख उपसम रस युक्त । इम गुण करी जुक्त साधु वा कोइ सतीयां ॥ हीरालाल इम कहे अनुयोग द्वार लहे । ताकोही आधार नाम कथनामे कथीया ॥ ९॥