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॥ ६ ॥
धन जो वैरागीजन जानलियो एहवो तन । धरियो वेरा मन जिम जल नावहै ॥ संजमको सारजो संसारको उतारे पार । हीरालाल कहे योही तीरणको दावहै हाँसरस उपजत हाँसकी वस्तुको देख्यां । विप्रीत बचन सुण्या आवे हाँसरस है || पुरुष स्त्रीनेो रूप बालबध तरुणीको । अन्यदेस भाखालिंगे हडहड हाँस है || सुता देवर के मुख मोभाइ मंडण कियो । जाग्रत भयासे नार हीहीकार हिंस है || इम अनेक उदारण हाँसरस काज | हीरालाल कहे मुनी मोन भाव वस है ॥ ७ ॥ कलुणिरसकी उतपती हे वियोग संग | नार भरतार पुत्रादिक व्याधि वयाणा || शत्रुभय मन जाणी सकल्प विकल्प आनी |