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दधिमे सयंभू रमण रुच कहे गोलाकार |
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परापत कुंजरामे अग्रेसर टाणिये ॥ १ ॥
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चोपदामे सिंघ सुरो नागांमांहे धरणीधरो ।
१५
मावन कुंवार माही वेणुदेव लाइये ||
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१७
कल्प माहे ब्रह्म लोग सभामे सुधमीं जोग ।
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स्थितिमं लवस्थीती उग सवठसिधमाई यै ||
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रंगाम किरमचिरंग दानामे अभय अंग |
३१
वज्रऋिषभ संघे में अति अधिकाइये ||
ટ્ર
संाणे चौरसस्थान ज्ञानमे केवल ज्ञान |
૧૪
ध्यानामे सुकल ध्यान निरमल धाइये || २ ||
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देशामे सुक्ल लेशा मुनियांमे जिनंदजैसा ।