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( १७२) ॥ सील वृतकी ३२ ऊपमां ॥ दोहा.-सीलरत्न सबसे बडो, सब बरतां सरदार । बत्तीस ऊपमा वर्णवी, प्रश्न व्याकरण मझार. ॥१॥ मन वच काया शुद्ध करी, धारे सीलसुरंग। स्वयंभूरमण दधितिर गयो, रहीतिरणी अवगंगा॥२॥
॥सवैया ३१॥ जोतषीमें निशाकर आगरमें रत्नांगर । बहु रत्न रत्ना माही मुख्यता बखाणिये ॥ मुगट आभूषणमांही वस्त्र माहेक्षेम जुग्ल । अरि बिंदकुसमामे सुवासित जाणिये ॥ चंदनामे गोशीसक ओषध्यामे हेमवंत । नदीयामें सीतासम ओर नहीं मानिये ॥