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(५) सुत्रकी वाणी सुणकर जोर लगाया। करी पचरंगी प्रमुख तपश्या भाया । कहे 'हीरालाल' दया धर्म मोक्षकी सेरी ॥तुम।।४॥ ॥ श्री महावीर श्वामीका स्तवन ॥ महाड राग । सुरांगना गावे मङ्गलाचार, दैवांगना गावे
__मङ्गालाचार ॥ ७ ॥ उर्ध अधोगति थकीरे । तिर्थकर पद पाय ॥ जननी स्वप्ना देखिया कांइ । दिग वेण दोनों
मिलाय ॥ सु ॥ १ ॥ छप्पन कुंवारी सब सिणगारी । गावे मिल२ गीत ।। रति करे आप आपणी काइ । पूर्ण प्रभकी
प्रीति ।। सु ॥ २ ॥ इन्द्र इन्द्राणी आवियारे । नर नार्यांका वृंद ॥ जन्म भवने जिनराजको । और जननी को
नमत आनन्द ॥ सु ॥ ३॥