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(४) तिहां छप्पन कुंवारी मिलकर मङ्गल गाया। प्रभूका मेरुपर मौछब किया सुर धाया। बाजे ताल मृदंग अतिचंग, दुंधवी भेरी॥तुम॥१॥ जब शांती हुइ सब देशका रोग मिटाया । तब नाम प्रभूजीका शांती कुंवर धराया। हुवा षट खन्ड नायक चक्रवर्त पद पाया। दिया वर्षीदान फिर संयम लेना चित चहाया। जब हुवा कैवल प्रकाश जीत लिये वैरी॥तुम॥२॥ मैंने लिवी आपकी ओट चरणकी छाया। तुम जग तारण जिनराज तजी जग माया। यह अष्ट कर्मके बिकट कोटको ढाया।
तुम लिया मोक्षका मेहेल हुवा मन चहाया । . जहां सुख सागरकी लेहर अनन्ती हैरी ॥तुम॥३॥
श्री जवाहर लालजी महाराज हुकम फरमाया । कुकडेश्वर गणा तीन चौमासा गया ।