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(१६४) जब कहे सेठ या बात पुत्र नहीं कीजे। महाराज कुलको लांछन लागेजी। नहीं मानी सेठकी बात उठ कर होगया आगेजी।
यों कियो नटको स्वांग ढोल बजावे । महाराज विद्यामें हुवा प्रवीनाजी। बारह बर्ष हुवा नट संग रहे शठ रंगमें भीनाजी॥ एक शहर जबर जो देख ख्याल रचायो।। महाराज वंश चड बाजा बजायाजी॥धनदत्त॥२॥ यह देख रह्या सब लोक ख्याल खिलकतको । महाराज भूपकी निजसं आइजी। नटवी रुपका कूपमें भूप चित गिर्यो जाइजी ॥
नहीं देवू दान गिर पडे नट जो आइ । महाराज नारी में लेस्यूं परणीजी। ऐसी राजा विचारी बात कर्मगती कैसी करणीजी। , नट मांगे दान नृप घात विचारे उनकी ।