________________
(१६३) मिलत-यह उन्नीसो पेंसट रत्नपुरी मांही महागज-हीरालाल आनन्दे गायाजी ॥ त्रिया॥५॥
॥ एलची पुत्र चरित्र ।। लावणी-चाल-दूणकी ।।
या पूर्व जन्मकी प्रीति रीति या देखो। महाराज मोह कर्म सांग बनायोजी। धनदन सेठको पृत नटवीको देख ललचायोजीगर।। इम कहे सेठजी पूत्रको यों समझाये । महाराज और परणाहूँ नारीजी । मत जावो नटके संग मानलो कही हमारीजी ।।
यह कुंवर कबूल नहीं करे सेठ की वानी। महाराज सेट नट पाले आवेजी॥ तुम पुत्रीको परणाय पुत्र मेरे मन भावेजी ॥
जब कहे नट घर रहे जमाई आई । महाराज विद्या सवही सिखलाऊंजीवनदत्त॥१॥