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( १६२) महाराज हाल सब मांड सुनायाजी॥ त्रिया।।४॥ यों बांची पत्र राजाको रोश भराया। महाराज दुष्ट दुर्बुद्धि नारीजी । या लोक हंसावन बात करी या जक्त मझारीजी॥ कहां गइ जोगनी कहां रत्नवतीकी गुरुणी। महाराज सती प्रपंच लखानाजी। जवली सीखनरनाथ आयानिजआपठिकानेजो ॥ दोहा-राजा मानवतीनिल्या, कहे कुलक्षणीनार॥ गर्भ धर्यों को पुरुषको, थें हंसायो संसार॥ सेलाणी आगे धारी, या मुद्रिका यो हार । जोगन कन्या गुरुणी हुइ, यह कृत मुज भूपाल ॥ छूट-राजमें हुवो आनंद मौछव जो कीधो। मानवतीके जन्म्यो पुत्र नाम ज दीयो । राजा रानी संयम ले स्वर्गको रस्तो लीधो। श्री जवाहरलालजी महाराज सूत्र रस पीधो॥