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________________ (१३७) ___ महाराज हरीको विरह क्यों पडताजी। श्रीरामचन्द्रमहाराज संयम भारलेइ विचरताजी॥टेर।। यह सीनाजी भी लिया हे संयम धारी। महागज की है निर्मल करनीजी ॥ हुवा वर्ग बारमे पद ऋद्ध हुइ इन्द्रकी वरनीजी॥ यह अवधि ज्ञान कर भव पाछलो देखे । महाराज रामपि है वनवासेजी। फरी सीतारुप वेक्रिय आया पति रामके पासेजी॥ चा-नाटकगीतवाणित्रवजावे।मुणियांमनउन्मादंउपावे राम ऋपिको बहु ललचावापांवनेवर घुघरीघमकावे॥ मिलन-यह अचल मुनिश्वर रह्या ध्यानके मांही महागज मेरुसम डिगे न डिगताज़ी॥श्रीराम॥१॥ जब किया रूप प्रगट गुन्हा बक्साया । महाराज मुनिजी कम पायाजी । फिर उसीवक्त दम्यान ज्ञान केवल प्रगटायाजी ॥
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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