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मिलत - सोच नहीं कोई दिलके अन्दर
होवे जिसकी गदीर बडी ॥ धीज ॥ ३ ॥ अग्निकुंडका हुवा जलसारा । नरनारी सब देखरा ॥ कुसुमकी वृष्टिकरी देवताः । जयश्कारसुर शब्दकिया || निकलङ्कहुवा तननिर्मल | सकल जहानमें यश लिया || दुर्जन कादिल देखघबराया। सिरमंदा सिर झुकादिया ॥ छूट - यो सील महा सुखकंद विघ्नको टाले I
जो पाले निर्मल चित्त रीति से चाले || श्री रत्नचंदजी महाराज कनजेडे वाले । गुरु जवाहर लालजी गुणवंत सुमितीको पाले । मिलत - चौसर के साल भोपाल शहर में हीरालाल गाइ ज्ञान जडी ॥ धीज ॥ ४ ॥
|| रामचंद्रजी की मोक्ष || लावणी - चाल दूणकी || उदय पुण्य के जोग चारित्र आवे |