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(१३८) यह किया देव मौछव सभीने जाण्या। __ महाराज केवली उपदेश सुणायाजी।
सब पाये परमानन्द सितेन्द्र सीस नमायाजी ॥ चौ-मुनिराजकीअमृतवाणी।सुणतांसुखलहेसवप्राणी भवअमिकीझालबुजानीपामेपदअविन्याशीस्थानी॥ मिलत-यह समझाया नरनार धार वृत लीना । महाराज आपकोसरण जो धरताजी ॥श्रीराम॥२॥ जब पूछे सितेंद्रजी आपमुझे बतलावो। महाराज भाइ लक्ष्मण अति प्याराजी।। वो कौनगतिमै वशेकभीनहीं रहता न्याराजी ॥ तब कहे केवली सुनो जिकर तुम उनका । महाराज पंक. प्रभा के माहीजी। निज कृतकर्मके जोग भोगअधोगति पाइजी ॥ चौ-देखनकाजसुरेन्द्रआये।निर्कावासकेदुःखमिटाये॥ दोनो हाथोंमेंधरके उठायोगिरजावेबहुपछतावे ॥