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॥ नीर २ ॥
॥ नीर ४ ॥
लावा अंग पसारारे शिक्षा उपर वृक्षको छांयां । पाँव पर पांव उचारारे जरद कुंवर देखी धनुष्य जाण्यो मृग ते वारा रे बांय पग परिहार करी के । जरद कुंवरको निहारारे मुद्रिका जाइ दीजे भुवाने । कीजे सब समीचारा रे ॥ नीर ६ ॥ ले मुद्रिका पाछा फिरिया |
॥ नीर ५ ॥
॥ नीर ३ ॥ चडायो ।
पलटी प्रणाम की द्वारारे ॥ नीर ७ ॥ रोश करीने धनुष्य चडायो । हुवा हरीका अंतकारारे ॥ नीर ८ ॥ जल लेइने हलधर आया । भाई से प्रेम अपारा रे
॥ नीर ९ ॥