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' (१०८) कहां अपनाही जोर चलावेरे ॥ क ॥ ६ ॥ कौन पुकार सुनेगा इनकी। क्या परवाह है हमको किनकी॥ खबर लूंगा दुश्मन है उनकी । ऐसे मूंछो पर हाथ लगावे ॥ क ॥ ७॥ कहा कहिये सुन मेरी सजनी। नंदके ललवाने घेरी लीनी ॥ जोर जुल्मी हमसे कीनी । ऐसे राह विच लूट मचावे ॥ क ॥ ८॥ खेल ख्याल आया गिरधारी । मात कहे कुरबान तुम्हारी ।। हीरालाल कहे कंश की ढारी। वो ढारी कैसे टरावे ॥ क ॥ ९ ॥