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________________ ( ९७ ) || प्रभू || ढेर || ॥ प्रभूसे अर्जी ॥ खाजा लेलो खबरिया हमारी रे - देशी ॥ प्रभू सुनो अर्जिया हमारी रे | लेलो २ खबरिया हमारी रे जिनवर के नामसे होत ऋद्धि सिद्धि । पातक दूरकर मुक्तिको लीधी ॥ मिटेगी २ जन्म मरणकी वारी रे || प्रभु ॥ १ ॥ कोड भवांका दुःख मिटे आपके दीदार से | जन्म जरा रोग मिटे किया के उद्धारसे || खुलेगी २ मुक्तिकी वारीरे ॥ प्रभृ ॥ २ ॥ क्रोध मान दोई डोले आपकी फिराक में । लोभ माया दोई छूटे चैतन्यको सुराक में || लुट गये २ जग्त संसारी रे धर्म संग रहे रंग दिलसे विचारी । धन गाजे मोर नाचे ऐसी प्रीती प्यारी || खुलेगी २ अंखियां हमारी रे ॥ प्रभू ॥ ४ ॥ ॥ प्रभु ॥ ३ ॥
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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