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(९८) आप नामको वश रखो ममताको मारी । हीरालाल सुख चहावे अर्ज तो गुजारी ॥ हटेगीर कुमतिकी नारीरे ॥प्रभू ॥५॥
॥ लावणी-त्रियाचरित्र ।। चाल-खडी ॥ अमल अकल तुम सुनो चतुरनर । नाशके हुकममें नहीं रहना ॥ तुच्छ बुद्धि त्रियाकेतनमें भेदउलीकोक्यादेना ॥टेर॥ पद्मावती राजा कोणिककी । थी पटरानी नारजी॥ हार हाथी लेनेके वास्ते । कहा जो वारम्बारजी॥ राजाकोणिकने नहीं विचारी। भाईसेकरीतकरारजी। वहेल कुंवर उठ गये विशाला।नाना के दरवारजी॥ जब दोनों राजाके युद्ध हुवा था।शास्त्रमें अधिकारजी॥ हार हाथी हाथ नहीं आया। हुवो घणो संहारजी॥ तजोमानभजोभगवानासुनीयरुज्ञानहियेगहना॥तु१॥