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________________ (९३) होनहार पदार्थ प्रगटे । तूं क्यों भूला फिरेरे ॥ ते ॥१॥ संभूम चक्री विप्तापाइ । रस रामसे डरेरे ॥ राज लियो छे खंडको सारी । जो वैरीको दूर करेरे ॥ तेरी ॥ २ ॥ कंस कृष्णका झगडा भारी । कैसा दाव धरेरे ॥ फते हुइ मुरारी की सारी | कंस गयो यम घरेरे ॥ ॥ ३ पुफदंत वच्छ राजको डाल्यो । समुद्र जल भरेरे ॥ राजा दशरथ छलवा काजे । राक्षल होंस भरेरे ॥ तं ॥ ४ ॥ अंतर आत्मध्यान लगायां | अपनो काज सरेरे ॥ कहे हीरालाल जहाज जक्तकी । आपोआप तीरेरे ॥ तेरी ॥ ५ ॥ ॥ उपदेशी लावणी छोटी कडी में || यह कंचन वरणी काय पाय सुन प्यारे । पाय नर भवको अवतार जन्म क्यों हारे ॥ टेर. ॥
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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