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(९२) ॥ जक्त जंजाल दर्शक-गजल ॥ इस जक्तके जंजाल म्यान भूलना नहीं। नूर देखर दरपनमें फूलना नहीं ॥टेर ॥ यह संसार हाट घाट जैसा गट है सही। ठग लेत दुनियादारी मीठे बोलतो कही ।इस॥१॥
यह जौबनका जोर शोर इसमे राचना नहीं। __ दया दान मान पान बिन यंही तो गई ॥इस॥२॥
यह साफ दिल रख जाप कीजिये वही । न कीजिये कुसंग घर पारके जई ॥इस ।। ३ ॥ दया पाल पाप टाल ज्ञान रंगमें रही। इम कहे हीरालाल ख्याल मोक्ष का यही ॥इस॥४॥
॥पद-धारी नहीं होवे ॥ राग-आसावरी ॥ तेरी धारी कैसे घेरेरे । तूतो नाहक भ्रमना करेरे चहावत है संपत तूं संघली। अपनेही काज घरेरे॥