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(९१) ॥ पद-अनित्यता दर्शक ॥ राग-ठुमरी ।। कंहा डोलत अभिमान गुमानी । तेरे सिरपर काल निशानी ॥ कहां ॥ टेर. ।। चहूं गति भटकत शट नर अटकत । जैसे बैल वहे घानी ॥ कहां ।। १ ॥ तन धन जौवन घनजिम छिनछिन । निश भर चपला चमकानी ॥ कहां ॥ २ ॥ पलकमें पलटत जोवन किम टिकत । जैसोपूर चढे पानी ॥ कहां ॥ ३ ॥ मात और तात भ्रात सव सजन । जैसी बाट बटाउवानी ॥ कहां ॥ ४ ॥ कहे हीरालाल दयालू मयालू । पावत अमृत जिनवानी ॥कहां ॥ ५॥