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(८५) सत्पुरुषोंको देखकर घुर्राया । कलयुगमें ॥ ७॥ इत्यादी लक्षण कलयुगका । सतगुरुजी मुखे फरमाया ॥ कलयुगमें ॥ ८ ॥ कहे हीरालाल ऐसे कलयुगमें । जैन धर्म कल्पवृक्ष छाया ॥ कलयुगमें ॥ ९ ॥
॥ पद-जरा गुण दर्शक-चेतन चेतोरे-देशी ॥ जरा आइरे२तूंचेत चितानन्द तज गुमराइरे।।टेर॥ गई अवस्था जौबनियाकी । आयो बुढापो वैरीरे॥ कायापुरीको किल्लो लियो। चउदिश घेरीरे ॥ज? बेटा बेटी मुख नहीं बोले । बुद्दो हेला पाडेरे । घरकी त्रीया मुख मचकोडे। जगा विगाडेरे ॥जर सारो दिन वैसी रहे घरमें । बाहिर क्यों नहीं डौले रे॥ घरका माणस सामां बोले, शंकादि खोले रे ॥ज३