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(४६) मांगे खीचडी मेले राबडी। पीवे सेहती सेहती रे ।। दंतपुरीका किल्ला पडिया। शिर छाइ सफेती रे॥ज अठी वठीने जोवे डोकरो। जोर कांइ नहीं चाले रे।। नाक झरे आंखे कम सूझे। खाट पोलमें डालेरे॥ज५ स्वार्थकी सगाइ भाई । बुढाने कुण पूछेरे ॥ देली चडता दीसे डूंगरी, । पगल्या धूजेरे॥ ज ६ डोकरियाकेबान्ध्यो टोकरियो। काम पडया हलावेरे॥ अन्नपाणी ऊंचास्यूं मेले, । पडयो २ पस्तावेरे॥ज७ जरा प्रभावे बुद्धि बिगडी । धर्म करणको वेटोरे ॥ मायाजालमें फसियो मूर्ख, । पापमें सेंठोरे ॥ ज ८ जब लग काया रहे निरोगी।इन्द्रिय पांचो पूरीरे ॥ हीरालाल कहे लावोलीजे, । कर्म चक चूरीरे ॥ जर
॥ पद-मनको सद्बोध. देशी-बणजाराकी ॥.
श्री जिनराज अर्ज हमारी।