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________________ - दुष्टार कमेन्वन-पुट-जाल-मंधपने भासुर-धमकेतन् । धूपर्पिभूतान्य गुगन्ध-गन्धाजनन्द्र-निद्धान्त यतीन् यजेऽहम्॥११॥ पाय मुगन्ध . प पार्य सांग । न धूप जिin को, अष्ट पर्म अप होय । नय प्रम पापन गे: मान पिर पौर। पहिने, जिनपन पनि गम्भीर।। - निदान निपानीति घुम्पडिलम्पन्मनमानगम्या नादि-बादाम्मलित प्रभावान। फना मांस-पन्नाभिनाजगन्द्र मिळाल-पनीन बजेऽहम्॥१२॥ सो ममी परनी पर, मोगमा फाले। फरगा नारा पी, निम्पग शिरपल देय । पल पल गाने परत ये फल ये पल नाय । महानोर पल तुम रियो, तानं पजू पांय ॥ ____ो गोगना पल निर्मपामारि स्या।। सहारिनगन्धासन-पृषजानन चैप-दीपामन-धूप मनः । पलबिचिचन-पुण्य-योगासिनन्द्र-सिद्धान्न-यनीन यजन्हम्॥१३॥ पारा पन्दन पमों, पक्ष पुष्प नपेदा । ___ोप धूप फल अर्प युग, ये पूजा यसु भेव ! ये गिन पना जप्ट पिथि, कोने पर शुधि । प्रमि पूना सलधार मो, दी धार अभग ॥ दी जनयंपाम अर्थ नियंपामानि मा । ये पूजा जिननाय-शास्त्र-पमिना भन्या मटा कुर्वते घमन्ध्यं मविचित्रकान्परचनामुशाग्यन्तो नराः।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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