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________________ जैन पूजा सम समवशरन महिमा हरि कोनी दीनी दृष्टि चरण निजआन । ऐसे चंद्रनाथ जिनवरको, अर्ध चढ़ाय करूँ नित ध्यान ॥ ही फाल्गुनमन्य केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीचन्द्रमजिनेन्द्राय अघ 1 सातें बदि फाल्गुनके महिना, संमेदाचल शृग महान । ललितकूट ऊपर जगपतिने, पायौ आतम शिव कल्यान ॥ सुरसुरेश मिलि पूज रचाई, गायो गुण हर्षित जिय ठान । सुगुरु समन्तभद्र के स्वामी. देहु जिनेश्वर को सतज्ञान ॥ ॐ ही फाल्गुन्या नाकन्यापकता श्रीचन्द्रपर्णान्द्राय अनं । १०९ जननाला दोहा - अष्टम क्षितिपति तुम धनी, अष्टम तीरथराय । अष्टम पृथ्वी कारने, न अङ्ग वसु नाय ॥ १ ॥ चाल - अहो जगतगुरु' को । अहो चन्द्र जिनदेव तुम जगनायक स्वामी । अष्टम तीरथगज, हो तुम अन्तरयामी ॥ १ ॥ ठोकालोक मझार, जड चेतन गुणधारी । द्रव्य छन् अनिवार पर्यय शक्ति अपारी ॥ २ ॥ तिहि सबको इकबार जाने ज्ञान अनन्ता । ऐसो ही सुखकार दर्शन हे भगवन्ता ॥ ३ ॥ तीनलोक तिहुँकाल ज्ञायक देव कहावो । निरवाधा मुखमार तिर्हि शिवथान रहावौ ॥ ४ ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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