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जन पूजा पाठ मप्रह
है प्रभु ! या जगमाहि मैं बहुते दुःख पायौ।
___ कहन जरूर त नाहिं तुम सवही लखि पायौ ।। ५ ।। कबहूँ नित्य निगोद कवहूं नर्क मंझारी ।
सुरनर पशुगति माहि दुक्ख सहे अति भारी ॥ ६ ॥ पशुगतिके दुःख देव ! कहत बड़े दुःख भारी ।
छेदन भेदन त्रास शीत उष्ण अधिकारी ॥ ७ ॥ भूख प्यासके जोर सवल पशु हनि मारै।
तहां वेदना घोर हे प्रभु कौन सम्हार ॥ ८ ॥ मानुष गतिके मांहि यद्यपि है कछु साता ।
तोहू दुःख अधिकाय क्षणक्षण होत असावा ॥६॥ धन जोवन सुत नारि सम्पति ओर घनेरी ।
मिलत हरप अनिवार विछुरत विपत धनेरी ॥१०॥ सुरगति इष्ट वियोग पर सम्पति लखि झुरै।
मरण चिन्ह संयोग उर विकलप बहु पूरै ॥११॥ यों चारों गति मांहि दुःख भरपूर भरौ है।।
ध्यान धरौ मनमांहि याते काज सरौ है ॥१२॥ कर्म महादुःख साज याको नाश करौ जी।
___ बड़े गरीव निवान मेरी आश भरौजी ॥१३॥ समन्तभद्र गुरुदेव ध्यान तुम्हारो कीनों!
प्रगट भयो जिनवीर जिनवर दर्शन कीनों ॥१४॥