________________
जन पूजा पाठ सप्रह
पचकल्याणक, कुसुमलता छन्द । चैत्र प्रथम पंचम दिन जालों, गर्भागम मंगल गुणखान । मात लक्ष्मणाके उर आए,तजि विलोक चन्द्र भगवान ॥ बट नवसाल रतन वरषाए, इन्द्र- हुकुमतें धनद नहान । तिनके चरण कमल मैं पूज, अर्घ चढ़ाय करूं नित ध्यान। ॐ ही कैष्णपचन्या गर्भनगलप्राप्ताय श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्थे । पौष वदी ग्यारसको जन्मे, चंद्रपुरी जिनचन्द्र महान । महासेल. राजाले प्यारे, लकल सुरासुर मानें आन । सुरगिरिपर अभिषेककियोहरि, चतुरनिकायदेव सवआन सोजिनचंद्र जयो जगमांही, अर्घचताय करूँनित ध्यान।। ॐ ही गैषष्णैकादश्या जन्ननगलप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अब । पौष बदीप्यारस तप लीनों, जानों जगत अथिर दुखदान। राजत्यागि दैराग धरो, वन जाय कियौ आतम कल्यान॥ सुरनर खगमिलि पूज रचाई, मनमें अतिही आनंद मान । ऐसे चंद्रनाथ जिनवरको अर्घ चढ़ाय करूं नित ध्यान ॥ ॐ ही पौषकृष्णैकादश्या तपोमगलप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्ध । फाल्गुन वदी सप्तमी जानों, चार घातिया घाति महान । सकल सुरासुर पूजि जगतपति,पायोतिहि दिन केवलज्ञान॥ ।