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१४३-ठुमरी ।
मैं पूजे पंच कुमार-मिटी भव बंध अटक मेरी ॥ टेक। जब वासु पूज्य भगवान मल्लि मैं करी याद तेरीभए नेमिपाव महावीर प्रगट गई हट मोह वेड़ी ॥१॥ आयो तुम दार करी प्रक्षाल तीन बेरी. भई जन्म जरामरणादि भवांतप शीतल जिनमेरी ॥२॥ चर्चत चंदन शांति भए प्रभु पंच पाप बैगभई अक्षय ऋद्धि समृद्धि करी जव अक्षत की ढेरी ॥३॥ पुष्प हरें कंदर्प क्षुधा-नैवेद्य ठाय गेरीदीपक चढ़ाय चरणारविंद में आंख खुली मेरी ॥४॥ अष्ट कर्म को बंश भयो विध्वंस धूप खेरीफलतें अजरामर आश भई-शिव संपत अवनड़ी॥५॥ अर्घ अनर्घ आरती आरति मेटी सब मेरीकहै नैन चैन मांगै मंगत भव भव सेवा तेरी॥६॥
१४४-चाल तुलसा महारानी नमो नमो
तुमही प्रभु सिद्ध महेश्वर हो-हे महेश्वर हो परमेश्वर हो ॥टेक॥ निरावरण चिद्ब्रह्म स्वरूपी-तुम जित कर्म. बलेश्वर हो॥१॥ तुम शंकर कल्यान के कर्ता-सुख भर्ता भूतेश्वर हो ॥ २॥ हर्ता हो सब कर्म कुलाचल-मृत्यु जय अमरेश्वर हो ॥ ३॥ निधन भव बंधन भेत्ता-नेत्ता-मुक्ति पर्थश्वर हो॥४॥ ध्यावै सुर नर मुनिगण तुमको-तात आप गणेश्वर हो॥५॥ पुजत पाप अतोप मिटै सब-शांतिप्प्रद चंद्रश्वर हो ॥ ६॥