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________________ [४३ दान शील तप भावन भाकर, संजस कम्यों न लहे। जाते लैन सुख्य तुम पाते, जाते करम दहे ॥४॥ ६१-राग ठेठ बरवा ठगगे उपदेशी । जिया न लगावैरे, देख पराई मायो ॥ टेक | पुत्र कलत्र पराई संपति, इन संग मतना उगावैना ठगावैरे ॥ १ ॥ पुद्गल भिन्न भिन्न तुम चेतन, अंत न संग निभाव न निभावैरे ॥ २ ॥ मतकर विषै भोग की आशा, मत विष घेलि बढ़ावैरे बढ़ावरे ॥३॥ नयनानंद जे मूरख प्राणो, सोवत करम जगावेरे जगावरे ॥ ४ ॥ .. .१२-राग धनाश्री । नजि पुद्गल को संग, अज्ञानी जिया, तजि पुद्गल को संग ॥ टेक ॥ तुम पोषत यह दोष करत है, पय पिय जेम भुजंग। बड़वानल सम भूरि भयानक, घायक आतम अंग ॥१॥ यासंग पंचपोप में लिपटो, भुगती कुगति कुढंग-परिवर्तन के दुख बहुपाये, याही के परसंग ॥२॥ शीकर खातिसंग सोगर के होवत वारि विहंग । भूपनको भूषणको संगति, ठानन आदर भंग ॥ ३॥ अजहू चेत भई सो भई है, रेमद मत्त मतं । नयन सुख्य सतगुरु करुणानिधि, यकसत विभव अभंग ॥ ४॥ ६३-रागनी वरवा ठुमगे। लवकरनी दयाविन थोथीरे । टेक ॥ जीवदयाविन करनी निरफल, निष्फल तेरी पोथीरे ॥ १॥ चंद विना जैसे निष्फल, रजनी, आव विना जैसे मोतीरे ॥२॥ नीर बिना जैसे सरवर
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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